भारत में हिन्दू बोले तो अपराध, जिहादी बोले तो अभिव्यक्ति! – शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी और मुर्शिदाबाद नरसंहार पर राष्ट्र की पुकार

शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी और मुर्शिदाबाद नरसंहार: सच्चाई, साजिश और सत्ता का डर

शर्मिष्ठा की गिरफ्तारी और मुर्शिदाबाद नरसंहार: सच्चाई, साजिश और सत्ता का डर

1. शर्मिष्ठा पनोली की गिरफ्तारी: एकतरफा कार्रवाई?

शर्मिष्ठा पनोली, पुणे की एक 22 वर्षीय लॉ स्टूडेंट और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, को कोलकाता पुलिस ने 30 मई 2025 को गुरुग्राम से गिरफ्तार किया। उन पर आरोप है कि उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें उन्होंने "ऑपरेशन सिंदूर" पर बॉलीवुड हस्तियों की चुप्पी की आलोचना की और कुछ टिप्पणियाँ कीं जिन्हें धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला माना गया।

हालांकि शर्मिष्ठा ने वीडियो को हटा दिया और 15 मई को बिना शर्त माफी मांगी, लेकिन कोलकाता में उनके खिलाफ FIR पहले ही दर्ज हो चुकी थी। पुलिस के अनुसार, उन्हें कई बार कानूनी नोटिस भेजे गए, लेकिन वह अनुपलब्ध रहीं, जिसके चलते अदालत ने गिरफ्तारी वारंट जारी किया।

इसके आधार पर उन्हें गुरुग्राम से गिरफ्तार कर कोलकाता लाया गया और 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेजा गया। उन पर धार्मिक समूहों के बीच वैमनस्य फैलाने, धार्मिक भावनाओं को आहत करने और सार्वजनिक अशांति भड़काने के इरादे से अपमान करने के आरोप लगे हैं।

इस गिरफ्तारी ने राजनीतिक और सामाजिक बहस को जन्म दे दिया है। कई नेताओं और विदेश से भी आवाज़ें उठ रही हैं कि क्या भारत में अब सच्चाई बोलना अपराध बन चुका है?

2. मुर्शिदाबाद नरसंहार: मौन क्यों है प्रशासन?

26 मई 2025 को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले में एक ही हिंदू परिवार के चार सदस्यों को जिहादी भीड़ ने बेरहमी से मौत के घाट उतार दिया। वजह? सोशल मीडिया पर “जय श्री राम” और “भारत माता की जय” के समर्थन में बोलना।

स्थानीय पुलिस ने शुरू में इस पूरे हमले को “स्थानीय विवाद” करार दिया। लेकिन जब चश्मदीद सामने आए और वीडियो वायरल हुए, तो साफ हो गया कि यह एक एकतरफा सांप्रदायिक हमला था। एक बच्ची की चीखें तक उस भीड़ को नहीं रोक सकीं जो उसे जिंदा जलाने आई थी।

TV चैनल्स और तथाकथित 'धर्मनिरपेक्ष' पत्रकार इस पूरे नरसंहार पर मौन साध गए। क्या इसलिए क्योंकि पीड़ित हिंदू थे?

3. दोहरा मापदंड: भारत माता की जय बोले तो जेल, जिहादी नारे बोले तो मौन!

हमारे देश में जब कोई हिन्दू युवा 'भारत माता की जय' बोलता है, तब उसे कट्टरपंथी, साम्प्रदायिक या राष्ट्रवादी कहकर बदनाम किया जाता है। दूसरी ओर, अगर कोई मजहबी कट्टरपंथी खुलेआम 'हिन्दुओं को काट दो', 'काफिर मिटा दो' जैसे नारे लगाता है, तो उसे अभिव्यक्ति की आज़ादी का कवच मिल जाता है।

एक छात्रा को सिर्फ इसलिए जेल में डाल दिया गया क्योंकि उसने ऑपरेशन सिंदूर पर बॉलीवुड की चुप्पी पर सवाल उठा दिए। जबकि 'हिन्दुस्तान में रहकर भारत माता की जय नहीं बोलेंगे' कहने वाले आज भी खुला घूम रहे हैं। यही है लोकतंत्र का दोहरा चेहरा।

⛔ एकतरफा कानून का उपयोग:

IPC की धाराएं सिर्फ हिन्दू युवाओं पर लागू होती हैं क्या? क्या देशभक्ति अब अपराध हो गया है?

शर्मिष्ठा को धर्म विशेष के कारण जेल भेजा गया या विचारों के कारण — ये सवाल पूरे राष्ट्र से है। क्या विचारों की आज़ादी अब सिर्फ एक मज़हब के लिए रह गई है?

4. जनता की परीक्षा – क्या ये भारत है या वोटबैंक का मैदान?

हर बार जब देशभक्तों की आवाज़ को दबाया जाता है, हर बार जब एक हिन्दू को मज़हब देखकर निशाना बनाया जाता है, तो जनता की आत्मा काँपती है। लेकिन कब तक ये चुप्पी?

क्या भारत अब मज़हबी भावनाओं के लिए काम करेगा या संविधान के लिए? क्या अब देश की संसद और न्यायपालिका सिर्फ 'मूल्य आधारित चयन' करेंगी?

🛑 संविधान का चयन या संप्रदाय का चयन?

आज का सवाल यही है – क्या हम संविधान की रक्षा करेंगे या उसे ताक पर रखकर कट्टरपंथ को बढ़ावा देंगे?

जो 'भारत माता की जय' को नफरत मानते हैं, उनके लिए ये देश सिर्फ एक वोटबैंक है। लेकिन जो इसे अपनी माँ मानते हैं, उनके लिए ये आत्मा है, अस्तित्व है।

🔔 जनता से अपील:

अब समय है कि देश की जनता जागे। हम एक मौन पीढ़ी नहीं बन सकते। अगर आज नहीं बोले, तो कल बोलने का अधिकार भी छिन जाएगा।

हम वोट करें, बोलें, लिखें — लेकिन संविधान और राष्ट्र की गरिमा को बचाने के लिए।

💬 आपकी राय हमारे लिए महत्वपूर्ण है! कृपया अपने विचार शालीनता और सम्मान के साथ साझा करें। अभद्र भाषा या स्पैम को हटा दिया जाएगा।

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— अभिजीत गुरु | संपादक, NewBharat1824.in

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