One Nation One Election: लोकतंत्र की नींव पर चोट?
One Nation One Election: संघीय ढांचे पर प्रभाव और लोकतंत्र की चुनौतियाँ
क्या ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ वाकई भारत के लोकतंत्र को मज़बूत करेगा या यह हमारे संघीय ढांचे की जड़ों को कमजोर कर देगा?
परिचय: 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की अवधारणा
यह विचार पहली बार 1983 में सामने आया था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इसे फिर से राष्ट्रीय विमर्श में लाकर खड़ा किया है। उद्देश्य यह है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं, ताकि समय, पैसा और प्रशासनिक संसाधनों की बचत हो।
संघीय ढांचे पर संभावित प्रभाव
भारत एक संघीय लोकतंत्र है जिसमें केंद्र और राज्य दोनों की अपनी-अपनी स्वतंत्र शक्तियाँ हैं। यदि सभी चुनाव एकसाथ होते हैं, तो राज्यों को अपने कार्यकाल या स्वतंत्र निर्णयों में बाधा आ सकती है।
राज्यों की स्वायत्तता पर यह प्रस्ताव सीधा असर डाल सकता है। अगर किसी राज्य सरकार को बीच कार्यकाल में बर्खास्त किया जाए तो क्या वो नए चुनाव का इंतजार करेगी या तुरंत चुनाव होगा?
विविधता में एकता या एकता में खतरा?
भारत की राजनीतिक विविधता ही इसकी ताकत है। क्षेत्रीय मुद्दे, भाषाई पहचान और सांस्कृतिक प्राथमिकताएं अक्सर राज्यों में चुनावी दिशा तय करती हैं। एकसाथ चुनाव में ये आवाजें राष्ट्रीय बहस के शोर में दब सकती हैं।
संवैधानिक और व्यावहारिक चुनौतियाँ
- अनुच्छेद 83(2) और 172 का संशोधन आवश्यक होगा
- राज्यों की सहमति और बहुमत का समर्थन जरूरी
- क्या बीच कार्यकाल में गिरी सरकारों को राष्ट्रपति शासन तक सीमित रखना उचित होगा?
राजनीतिक दृष्टिकोण: समर्थन और विरोध
प्रधानमंत्री मोदी और BJP इसे विकास का इंजन मानते हैं। वहीं कांग्रेस, TMC, DMK जैसी पार्टियाँ इसे संघीय अधिकारों में हस्तक्षेप मानती हैं।
चिंता यह है कि इससे राष्ट्रीय मुद्दे क्षेत्रीय मुद्दों पर हावी हो जाएंगे और लोकतंत्र की बहुस्तरीय संरचना में असंतुलन आ जाएगा।
निष्कर्ष: बदलाव जरूरी है, लेकिन संतुलन से
‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ अपने आप में एक आकर्षक विचार है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में संविधान, संघीय भावना और जन-सहमति का सम्मान सर्वोपरि होना चाहिए। किसी भी बदलाव को थोपने की बजाय उसे समझाकर अपनाया जाए — यही लोकतंत्र का सार है।
जो कला जनक को जोड़ना चाहिए,
वही अब खुद की अनदूनी बन गई है।
- हर खबर को सतर्कता से पढ़ें
- प्रचार और सच्चाई में फर्क समझें
- अपने वोट का सही उपयोग करें
- झूठ और नफरत फैलाने वालों को पहचानें
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— अभिजीत गुरु | संपादक, NewBharat1824.in
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