कुर्बानी या करुणा? – बकरीद पर दुनिया की सबसे खामोश चीख | New Bharat 1824

कुर्बानी या करुणा? –
बकरीद पर दुनिया की सबसे खामोश चीख

आज बकरीद है।
करोड़ों जानवरों की गर्दनें आज “धार्मिक कर्तव्य” कहकर काट दी जाएंगी। लेकिन क्या ये आस्था है... या इंसानियत की हत्या?

सोचिए — अगर कोई मासूम, कांपती आँखों से आपको देखे और कहे:

“मैंने कुछ नहीं किया... मुझे मत मारो”

तो क्या आप उसकी गर्दन पर छुरी चला सकते हैं?

शायद नहीं। लेकिन आज दुनियाभर में इंसान वही कर रहा है।
अपने बच्चों के सामने, इसे खुशी की रस्म माना जा रहा है।
मासूम जीव — जो इंसान की तरह महसूस करता है, पर बोल नहीं सकता — उसकी चीखें हर गली, हर शहर में गूंज रही हैं... लेकिन कोई सुनना नहीं चाहता।

क्या धर्म का मतलब यह है कि किसी मासूम की जान लेकर हम पवित्र बन जाएं?

क्या ईश्वर हमारी भक्ति तब ही स्वीकारेगा जब रक्त बहेगा?
या वो चाहता है कि हम अपने अंदर की करुणा को जिंदा रखें?

🩸 क्या आस्था के लिए खून ज़रूरी है?

हर साल बकरीद के दिन, लाखों जानवरों की गर्दनें काटी जाती हैं — आस्था के नाम पर।
इसमें शामिल हैं बकरियां, भेड़ें, गायें, ऊँट और कई ऐसे जीव जिनकी मासूमियत पर कभी कोई सवाल नहीं करता।

इन बलियों को देखकर सवाल उठता है:

  • क्या धर्म हमें दया छोड़कर हिंसा सिखाता है?
  • क्या ईश्वर को खून बहता देखना पसंद है?
  • या ये केवल परंपरा बन गई है — सोच के बिना निभाई जा रही?

दुनिया तेजी से बदल रही है — करुणा अब कमजोरी नहीं, चेतना है।

🌍 पूरी दुनिया में एक दिन में कितनी जाने जाती हैं?

हर साल बकरीद के दिन 30 से 40 करोड़ जानवर हलाल किए जाते हैं — एक ही दिन में।
ये वो संख्या है जिसे सुनकर इंसान की आत्मा कांप जाए — अगर आत्मा ज़िंदा हो।

🤐 पूरी दुनिया चुप क्यों है?

जब एक कुत्ते पर हिंसा होती है, तो दुनियाभर की संस्थाएँ शोर मचाती हैं।
लेकिन जब करोड़ों बकरे, गाय, ऊँट और मासूम जानवर धर्म के नाम पर तड़पा-तड़पाकर मारे जाते हैं,
तो सब खामोश हो जाते हैं।

क्यों नहीं उठती कोई आवाज़?
🔸 UN कुछ नहीं कहता
🔸 PETA symbolic बयान देता है
🔸 कोई बॉलीवुड, कोई पत्रकार, कोई बुद्धिजीवी इस 'धार्मिक' पाप के खिलाफ नहीं बोलता

🕌 क्या कुरबानी इस्लाम में अनिवार्य है?

इस्लाम में भी कुरबानी एक 'वैकल्पिक' परंपरा मानी गई है।
कई मुस्लिम विद्वानों का मानना है कि अगर दिल में नियत और श्रद्धा है, तो बलिदान के बिना भी त्योहार पवित्र होता है।

कई देशों में डिजिटल क़ुरबानी का चलन है, जहाँ जानवर को मारने के बजाय दान दिया जाता है।
लेकिन भारत में अब भी हर साल इंसानियत का खून बहता है — जानवरों के ज़रिए।

🙏 धर्म का अर्थ करुणा है, क्रूरता नहीं

क्या सच में ईश्वर को खून चाहिए?
या वो चाहता है कि हम हर प्राणी में उसी की रचना को देखना सीखें?

🔸 मंदिरों में दीया जलाया जाता है, मस्जिद में नमाज़ पढ़ी जाती है
🔸 लेकिन इन सबके मूल में होती है — दया, करुणा और सेवा

इंसान अगर सिर्फ काटना जानता है — तो वो रचयिता का सच्चा भक्त नहीं हो सकता।

🇮🇳 भारत क्यों चुप है?

भारत, जो दुनिया को “वसुधैव कुटुम्बकम्” का पाठ पढ़ाता है,
जहाँ गाय को माँ और प्रकृति को पूजनीय माना जाता है —
वहां पर भी आज करोड़ों जानवर धर्म के नाम पर बेरहमी से मारे जा रहे हैं।

लेकिन देश का बुद्धिजीवी वर्ग, मीडिया, और राजनीतिक वर्ग संपूर्ण रूप से मौन है।

🗳️ वोटबैंक की मजबूरी या संवेदना का खून?

कोई मंत्री नहीं बोलता...
कोई पार्टी नहीं बोलती...
क्योंकि सबको डर है कि “उनके वोट कट न जाएं।”

क्या भारत का लोकतंत्र अब मौन स्वीकृति बन गया है — जहाँ जीवन से ज्यादा कीमती वोट होता है?

कोई साधु अगर सत्य बोले तो उसे जेल भेजा जाता है।
लेकिन अगर कोई धर्म विशेष के नाम पर दया की हत्या करे — तो उसे धार्मिक स्वतंत्रता कह दिया जाता है।

🚨 सवाल पूछना गुनाह कब से हो गया?

आज अगर कोई पूछता है — “क्या जानवरों की हत्या वास्तव में ज़रूरी है?”
तो उसे फासीवादी, नफरती या अल्पसंख्यक विरोधी कहा जाता है।

ये कैसी आज़ादी है जहाँ प्रेम और करुणा का पक्ष लेना भी अपराध बन जाए?

🧭 नया भारत कैसा हो?

🔹 जहाँ करुणा को धर्म माना जाए
🔹 जहाँ हर जानवर की चीख सुनी जाए
🔹 जहाँ वोट से पहले जीवन की कीमत समझी जाए

“जिस दिन भारत करुणा पर आधारित राजनीति करेगा, उस दिन से ही राष्ट्र निर्माण का असली आरंभ होगा।”

NewBharat1824.in पर हम लाते हैं देश की राजनीति, नीति और बदलाव की सटीक और निष्पक्ष खबरें


देश बदलेगा, जब हर नागरिक जिम्मेदारी से आगे आएगा।

— अभिजीत गुरु | संपादक, NewBharat1824.in

💬 आपकी राय हमारे लिए महत्वपूर्ण है! कृपया अपने विचार शालीनता और सम्मान के साथ साझा करें। अभद्र भाषा या स्पैम को हटा दिया जाएगा।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

One Nation One Election: लोकतंत्र की नींव पर चोट?

नरेंद्र मोदी: भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री | संघर्ष, सेवा और विकास की कहानी

ऑपरेशन सिंदूर: भारत का आग का जवाब | New Bharat 1824